कारसेवक श्यामबिहारी ने बताई 1992 की कहानी, बोले- साथी का हाथ कटते हुए देखा, घर लेट पहुंचे तो परिजनों ने सोचा बेटा राम के लिए शहीद हो गया

कारसेवक श्यामबिहारी ने बताई 1992 की कहानी, बोले- साथी का हाथ कटते हुए देखा, घर लेट पहुंचे तो परिजनों ने सोचा बेटा राम के लिए शहीद हो गया
जगदलपुर - TIMES OF BASTAR

21 जनवरी 2024 दंतेवाडा :- आज से ठीक 33 साल पहले अयोध्या में राम मंदिर को लेकर एक बड़ा आंदोलन छिड़ा। देशभर के राम भक्त कारसेवक यानी प्रभु श्री राम की सेना के रूप में अयोध्या पहुंचे थे। इनमें से बस्तर (आज दंतेवाड़ा जिला) से भी 95 कारसेवक शामिल थे। जिन्होंने लंबा सफर तय किया और राम मंदिर की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई। 

इन्हीं में से एक श्यामबिहारी गुप्ता भी हैं। जिन्होंने 33 साल पहले  आंखो देखी अपने उप्पर बीटी मंजर को बताया। बंदूक की गोली से बाल-बाल बचे। साथी कार सेवक का हाथ कटते हुए देखा। जब अयोध्या से घर लेट पहुंचे तो घर वालों ने सोचा बेटा राम के नाम पर शहीद हो गया। 

जानिए श्यामबिहारी की जुबानी, अयोध्या 1992 की कहानी

साल 1992, जब हमें एक संदेश आया कि कारसेवक के रूप में अयोध्या जाना है। हमारे आराध्य प्रभु श्री राम जी के मंदिर को लेकर बड़ा प्रदर्शन है। यह खबर मिलते ही दंतेवाड़ा के 95 कार सेवकों ने बिना कुछ सोचे समझे बैग पैक किया और इस लड़ाई में निकल पड़े। तब न तो सड़क अच्छी थी और न ही गाड़ियां।

जैसे-तैसे करीब 400 कि.मी का सफर तयकर रायपुर पहुंचे। हालांकि, रायपुर से उत्तर प्रदेश के फैजाबाद के लिए ट्रेन का इंतजाम था। हम सभी कारसेवक एक साथ एक ही बोगी में चढ़ गए और फिर ट्रेन से फैजाबाद के लिए निकल गए। सुबह जब फैजाबाद पहुंचे तो वहां के हिंदू समुदाय के लोगों ने जगह-जगह पर हमारा स्वागत किया। 

कार सेवक के रूप में अयोध्या जाने वाले सिर्फ हम 95 लोग ही नहीं थे, बल्कि पूरे देशभर से लाखों की संख्या में राम भक्त पहुंचे थे। अयोध्या से थोड़ी दूर पहले ही हमारे लिए एक कैंप बनाया गया था जहां हम सभी के रुकने की व्यवस्था की गई थी हमने रात बिताई  फिर अगले दिन सुबह सभी आंदोलन के लिए निकल पड़े।

हाथों में भगवा ध्वज थामकर श्री राम का जयकारा लगाते रहे। जहां तक हमारी नजर पड़ी वहां तक सिर्फ राम भक्तों की भीड़ ही नजर आ रही थी। एक बिल्डिंग पर उमा भारती समेत अन्य नेता मौजूद थे जो भाषण दे रहे थे। हम सभी उनका भाषण सुन रहे थे। हालांकि मस्जिद को तोड़ने की ऐसी कोई मंशा नहीं थी। लेकिन देखते ही देखते सारे राम भक्तों ने कहा कि, राम मंदिर का फैसला आज ही हो जाएगा।

फिर क्या था... हम सभी कारसेवकों की भीड़ एकाएक मस्जिद की तरफ बढ़ने लगी। मस्जिद को चारों तरफ से कंटीले तार से घेराबंदी कर रखा गया था, ताकि कोई भी पार न कर पाए। लेकिन प्रभु श्री राम के जयकारा लगाते हुए सभी में इतना जोश भरा था कि उस कांटों के तार को भी पार कर लिया गया। मेरे साथ गया एक कारसेवक सोमेश गुप्ता की आंखों में तार लग गया था। लेकिन, फिर भी उनमें बहुत जोश भरा हुआ था। 

हम सभी मस्जिद के ऊपर चढ़ गए थे। सबसे पहले गुंबद को तोड़ा गया। फिर एक-एक कर मस्जिद के ईंटों को निकाला गया। जिसके बाद एक नीम पेड़ के नीचे प्रभु श्री राम की मूर्ति को स्थापित किया गया था। आंदोलन में पूरे दिनभर का वक्त लग गया था। भीड़ इतनी थी कि हम सभी एक-दूसरे से बिछड़ गए थे। मेरे साथ मेरा एक और कारसेवक साथी मिलन सरकार भी था, जो अपने साथ एक लोहे की रॉड लेकर आ गया था। 

फिर उसी दिन शाम हम अपने कैंप तक पहुंचे। जब कैंप पहुंचे तो देखा कि मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग हाथों में तलवार पकड़े हमारे कैंप में घुस गए थे। साउथ से आए एक कारसेवक को अपने साथ लेजा रहे थे। तलवार से उसका हाथ काट दिया था। 

उसे जान से करने वाले थे लेकिन एक और कारसेवक ने अपनी हिम्मत दिखाई और लठ लेकर मुसलमानों की भीड़ में घुस गया। फिर हम भी उसे छुड़ाने पहुंचे। किसी तरह से हम सभी वहां से सुरक्षित निकल गए। जब माहौल शांत हुआ तब मैं कैंप के अंदर जा रहा था। इतने में ही पीछे से गोलियों की बौछार आनी शुरू हुई। एक गोली मेरे से सिर्फ दो इंच की दूर दीवार पर लगी। मैं बाल-बाल बच गया। 

हमें ऐसा लगा कि माहौल खराब हो रहा है। कुछ देर बाद पता चला था कि हमारे साथियों पर लाठी चार्ज भी हुआ है। इसके बाद अगले दिन सुबह जब आंदोलन खत्म हुआ तो हम घर के लिए निकले। हमारे साथ जो लोग आए थे वह पहली ट्रेन में निकल गए थे। हम कुछ घंटे के बाद चलने वाली दूसरी ट्रेन में बैठ गए थे। जिन-जिन मुस्लिम जगह से ट्रेन गुजरी वहां ट्रेन पर जमकर पथराव भी हुए थे। 

3 दिन का सफर तय कर हमारे साथी घर पहुंच गए तब परिवार वालों ने उनसे हमारे बारे में पूछा। लेकिन हमारा उन्हें कोई पता नहीं चला। साथी कारसेवकों और घर वालों ने सोचा कि हम प्रभु श्री राम के लिए शहीद हो गए हैं। घर का माहौल बिगड़ने लगा था। इसी बीच शाम के वक्त हम भी घर पहुंच गए। हमें देखकर परिजन काफी खुश हुए। शहर के लोगों ने हमारा भव्य रूप से स्वागत किया आज भी उस 1992 के मंजर को याद करता हुं तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते है l

इसके साथ ही जिस दिन अयोध्या में मस्जिद तोड़ी गई उस दिन हर घर में अयोध्या के लोगों ने दिए जलाए थे। जश्न मनाया था। मानों ऐसा लग रहा था कि जैसे प्रभु श्री राम घर लौट आए हैं। खुशी में लोग दिवाली मना रहे हैं। 33 साल पहले हमने जो आंदोलन किया था वह कारगर साबित हुआ। अब साल 2024 में प्रभु श्री राम अपने घर में विराजेंगे। हम बेहद खुश हैं।