श्रम दिवस पर विशेष : संस्कृति और श्रम से जुड़ा है बोरे-बासी…..
श्रम दिवस पर विशेष : संस्कृति और श्रम से जुड़ा है बोरे-बासी रायपुर : छत्तीसगढ़ आने वाले लोगों के लिए बहुत से आकर्षणों में सबसे बड़ा आकर्षण है, यहां की संस्कृति। तीज-त्योहारों और कला परंपराओं के साथ-साथ छत्तीसगढ़ का खान-पान भी लोगों को लुभाता है। लोगों को यहां व्यंजनों के स्वाद के साथ-साथ उनके नाम भी […]
श्रम दिवस पर विशेष : संस्कृति और श्रम से जुड़ा है बोरे-बासी
रायपुर : छत्तीसगढ़ आने वाले लोगों के लिए बहुत से आकर्षणों में सबसे बड़ा आकर्षण है, यहां की संस्कृति। तीज-त्योहारों और कला परंपराओं के साथ-साथ छत्तीसगढ़ का खान-पान भी लोगों को लुभाता है।
लोगों को यहां व्यंजनों के स्वाद के साथ-साथ उनके नाम भी रोचक लगते हैं और आकर्षित करते हैं, मसलन-ठेठरी, चीला, फरा, खुर्मी आदि। इन्हीं में एक नाम बोरे-बासी का भी है। असल में बोरे और बासी दो तरह के व्यंजन हैं, लेकिन हैं एक ही। पके हुए चावल को पानी में डूबोकर यह व्यंजन तैयार किया जाता है।
दही, अथान पापड़, चटनी, बिजौरी, भाजी जैसी चीजों के साथ इन्हें खाया जाता है। बोरे जब कुछ घंटा पुराना हो जाता है तो वही बासी कहलाता है। स्वाद के साथ-साथ ये व्यंजन पौष्टिक गुणों से भी भरपूर होते हैं।
दरअसल छत्तीसगढ़ की संस्कृति में बोरे-बासी रची-बसी है। यह लोगों के खान-पान में इस कदर शामिल है कि यहां के लोकगायन ददरिया और नाटकों में भी बोरे बासी का विवरण मिलता है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर एक मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के अवसर पर श्रमिकों के सम्मान में राज्य में बोरे बासी तिहार का आयोजन किया जा रहा है। यह कदम सामाजिक समरसता के साथ-साथ किसानों और श्रमवीरों का मान बढ़ाने की दिशा में एक प्रशंसनीय कदम है।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ी संस्कृति और लोक परंपराओं, तीज-त्यौहारों को प्रोत्साहन देने के लिए राज्य सरकार द्वारा लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इनमें छत्तीसगढ़ी पर्वों का मुख्यमंत्री निवास में आयोजन के साथ ही इन पर्वों का सार्वजनिक अवकाश भी घोषित किए गए हैं। पारंपरिक खान-पान को बढ़ावा देने के लिए सभी जिले में गढ़ कलेवा प्रारंभ किए गए हैं।
छत्तीसगढ़ में तीज-त्यौहारों से लेकर लोगांे के दैनिक जीवन में चावल का बहुतायत से उपयोग किया जाता है। बोरे-बासी यहां अमीर-गरीब सभी के घरों में इसे चाव से खाया जाता है। मेहमानों को भी इसे परोसा जाता है। आमतौर पर घरों में पके हुए अतिरिक्त चावल के सदुपयोग के लिए बोरे बासी तैयार की जाती है।
इसके गुणकारी महत्व को देखते हुए इसे घरो घर खाने का प्रचलन है। ग्रामीण क्षेत्रों में यदि घर में कोई मेहमान या कोई व्यक्ति आ जाये तो वह भूखा न जाए। सुबह जब लोग काम पर जाए तो उसके लिए तात्कालिक तौर पर भोजन की व्यवस्था हो जाए इसी उद्देश्य से परिवार के निश्चित सदस्यों से अधिक खाना बनाने का रिवाज प्रचलित है।
बोरे बासी जहां गर्मी के मौसम में ठंडकता प्रदान करता है, वहीं पेट विकार को दूर करने के साथ ही पाचन के लिए यह गुणकारी भोजन है। बोरे बासी को पौष्टिक आहार के अंतर्गत माना जाता है। गर्मी के मौसम में जब तापमान अधिक होता है तब बोरे बासी विशेष तौर पर खाई जाती है। यह लू से बचाने का काम करती है। बोरे-बासी में प्रचुर मात्रा में पानी होता है। उल्टी, दस्त जैसी बीमारियों में यह शरीर में पानी की कमी को दूर करती है।
छत्तीसगढ़ के बड़े होटलों के मेन्यू में भी बोरे बासी को शामिल किया गया है। अन्य राज्यों आने वाले लोगों को छत्तीसगढ़ के खान-पान की विशाल रेंज अब होटलों में मिल रही है। इसी प्रकार मिलेट से बने अनेक व्यंजन भी होटलों में उपलब्ध है। कोदो, कुटकी और रागी की खेती की परंपरा रही है। वनांचल क्षेत्रों में यह खाद्यान्न के रूप में लोकप्रिय है। पोषक तत्वों की प्रचुरता के कारण इसे सुपरफूड की संज्ञा दी गई है। बच्चों और गर्भवती महिलाओं को कोदो-कुटकी से बने उत्पाद का सेवन करने की सलाह भी विशेषज्ञ देते हैं।