चैत्र नवरात्रि की महाअष्टमी कब, 16 या 17 अप्रैल को...आइए जानें शुभ मुहूर्त और पूजाविधि…!!

चैत्र नवरात्रि की महाअष्टमी कब, 16 या 17 अप्रैल को...आइए जानें शुभ मुहूर्त और पूजाविधि…!!
जगदलपुर - TIMES OF BASTAR

14 अप्रैल 2024 रायपुर :- चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरूपों के पूजा-आराधना का बड़ा महत्व है। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापित किया जाता है। वहीं नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि दोनों दिन कन्या पूजन और हवन इत्यादि के कार्य बेहद शुभ माने जाते हैं। बता दें कि आठवें दिन महागौरी की पूजा की जाती है और नवमी तिथि को मां सिद्धिदात्री की पूजा-आराधना के साथ नवरात्रि का समापन होता है। तो आइए जानते हैं कि नवरात्रि की अष्टमी-नवमी तिथि का शुभ मुहूर्त, कन्या पूजन का मुहूर्त और पूजाविधि के बारे में।

अष्टमी तिथि- चैत्र नवरात्रि की अष्टमी तिथि का आरंभ 15 अप्रैल को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट पर हो रहा है और इसका समापन 16 अप्रैल को दोपहर 1 बजकर 23 मिनट पर होगा। इसलिए उदयातिथि के अनुसार 16 अप्रैल को महा-अष्टमी मनाई जाएगी और इस दिन कन्या पूजन का कार्य शुभ रहेगा।

 नवमी तिथि- चैत्र नवरात्रि की महानवमी 16 अप्रैल को दोपहर 1 बजकर 23 मिनट पर आरंभ होगी और 17 अप्रैल को दोपहर 3 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए उदयातिथि के अनुसार 17 अप्रैल को महानवमी मनाई जाएगी। यह नवरात्रि का आखिरी दिन होता है। इसे दिन को रामनवमी भी कहते हैं।

 अष्टमी-नवमी तिथि में कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त-
अष्टमी तिथि को सुबह 11.55 एएम से दोपहर 12.47 पीएम तक अभिजीत मुहूर्त में कन्या पूजन कर सकते हैं। वहीं महानवमी के दिन कन्या पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 27 मिनट से लेकर सुबह 7 बजकर 51 मिनट तक रहेगा।

कन्या पूजन की विधि-
कन्या पूजन के एक दिन पहले सभी कन्याओं को आमंत्रित करें। जब कन्याएं और बटुक( छोटे लड़के) के घर आ जाएं, तो उनका जल से पैरे धोएं और उनके चरण स्पर्श करें। अब उन्हें स्वच्छ आसन पर बिठाएं। फिर कन्याओं और लड़कों की कलाईयों पर मौली बांधें और उनका तिलक करें। इसके बाद उन्हें भोजन खिलाएं। कन्या पूजन के लिए हलवा और पूड़ी का प्रसाद तैयार करें। बच्चों को प्यार से भोजन खिलाएं और अंत में उन्हें गिफ्ट्स दें और उनके पैर छुएं।

कन्या पूजन से जुड़ी खास बातें-
कन्या पूजन के दिन 9 से अधिक कन्याओं को आमंत्रित करना शुभ होता है। 2 साल की कन्या को कौमारी कहा जाता है। मान्यता है कि इनके पूजन से घर की दरिद्रता दूर होती है और सभी बाधाओं से छुटकारा मिलता है। 3 साल की कन्या को त्रिमूर्ति का रूप माना जाता है। कहते हैं कि 3 साल की कन्या की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है। धार्मिक मान्यता है कि घर में सुख-शांति के लिए 4 साल की कन्या का पूजन करना बेहद शुभ होता है। 5 साल की कन्या को रोहिणी कहा जाता है, इनकी पूजा करने से सभी रोग-दोषों से छुटकारा मिलता है।

6 साल की कन्या को कालिका का रूप माना जाता है। मान्यता है कि इनका पूजन करने से सभी कार्यों में सफलता मिलती है। 7 साल की कन्या को चंडिका का कहा जाता है। मान्यता है कि चंडिका का पूजन करने से घर में धन-दौलत की कमी नहीं होती है। 8 साल की कन्या को शांभवी कहा जाता है। कहा जाता है कि 8 साल की कन्या का पूजन करने से सभी कार्यों में सफलता मिलती है। 9 साल की कन्या को मां दुर्गा का रूप माना जाता है। मान्यता है कि 9 साल की कन्या का पूजन से शत्रुओं पर विजयी मिलती है। 10 साल की कन्या को सुभद्रा होती हैं। मान्यता है कि 10 साल की कन्या का पूजन करने से सभी मनोकानाएं पूरी होती हैं।